Wednesday 18 January 2017

डलहौजी में मन की शांति


डलहौजी हिमाचल प्रदेश में स्थित धौलधार रेंज में बना एक टूरिस्‍ट प्‍वांइट है। डलहौजी को सन् 1854 में एक ब्रिटिश गर्वनर लार्ड डलहौजी ने स्‍थापित किया था ताकि वह गर्मियों में सुकून भरे पल किसी ठंडी और शांत जगह पर बिता सकें। डलहौजी, पांच पहाडियों पर बना नगर है जिनके नाम काथलॉग, पोर्टएन, तेहरा, बाकरोता और बालून है जो कुल 13 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैली हुई है।

डलहौजी में मन की शांति-डलहौजी की जनसँख्या बहुत कम है, वहां की खूबसूरत वादियो में जितनी शांति है उतनी शायद कही और महसूस  नहीं की जा सकती,डलहौजी के शांत वातावरण में मन को जो सुकून मिलता है उसकी कल्पना करके ही मन मचल उठता है! चारो तरफ ऊँची-ऊँची पहाड़ियों से घिरा हुआ खूबसूरत शहर, गर्मी के दिनों में वहां जितनी हरियाली रहती है शर्दी के दिनों में उतनी ही बर्फ रहती है!आप को न तो शेर का शोर शराबा मिलेगा और न ही गाड़ियों की कान में चुभती हुई आवाज़ ! डलहौजी जितनी खूबसूरत जगह है वहां के लोग उतने ही मिलनसार और हेल्पफुल है !
                                                      

खाज्झियार भारत का मिनी स्विटजीर लैंड- चारो तरफ देवदार के ऊँचे ऊँचे पेड़ो से घिरा पहाड़ो के बीचो बीच बसा हुआ एक इतना मन मोहक पर्यटन स्थल है की आप इसको देख कर दुनियां के बाकी दुःख और गम भूल जायेगे ! सर्दियों में चारो तरफ बर्फ से ढके पहाड़ और सूखे बीच में एक खूबसूरत मैदान आप को ये नज़ारा देख कर लगेगा की आप जन्नत में आ गए है!

खूबसूरत पीर पंजाल की पहाड़िया-सुबह और शाम के वक़्त जब सूरज की रोशनी पीर पंजाल की पहाड़ियों पर पड़ती है तो मानो आप के आँखों के सामने सोने के पहाड़ हो, लोगो का कहना है की जब वहां के पहाड़ियों के वासिंदे  अपनी बकरियो के ले कर उन पहाड़ियों पर चराने के लिए ले जाते है या वो अपनी रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी की चीज़े भेड बकरियो पर लाद कर ले जाते है तो उनके पैरो के निसान पर कुछ समय बाद सोना बन जाता है !

फूलों  की घाटी-गर्मियों के समय डलहौजी के थोड़ा ऊपर जाने पर फूलो की घाटी मिलती है, यहाँ पर पूरी घाटी मानो फूलो का सहर हो गयी है! तरह तरह के रंग बिरंगे फूलो को देख कर ऐसा लगता है मानो स्वर्ग लॊक  में आ गए हो !  


Friday 13 January 2017

जलता बंगाल

बंगाल में अभी हो रहे साम्प्रदायिक दंगो में हज़ारो लोगो की जान जा चुकी है, हज़ारो लोग बेघर हो चुके है, कितने परिवार तबाह हो चुके है, लोगो के घर जलाये जा रहे हैं, कितनी माताओ और बहनो की इज़्ज़त लूटी जा रही रही, लोगो में दहसत का तो ये आलम है की लोग अपने घर बार छोड़ कर भाग रहे हैं, स्तिथि भय से भयावह होती जा रही है,ना ही तो पुलिस कोई ठोस कदम उठा रही है और ना ही प्रसासन कुछ करने के मूड में दिखाई दे रहा है! कुछ प्रत्क्षयदर्सियो के अनुसार सब कुछ पुलिस के सामने होता है लेकिन वो कुछ करते नहीं हैं! सोचने वाली बात ये है की आखिर ये सब हो क्या रहा है, इन दंगो का मुख्य कारण है भाषा और जाति का एकांकी करण बंगाल में लोग हिंदी भासी को स्वीकार नहीं करते वहां लोग ज़्यादातर बंगला भाषा को ही तबज्जो देते हैं, लेकिन सोचने की बात ये भी है की आम इंसान जो मेहनत मज़दूरी कर के अपने परिवार का पेट भरता है उसको जाति और धर्म से ज़्यादा फर्क पड़ता है, मेरे हिसाब से तो वो पेट की आग बुझाने में इतना मसगूल होता है की उसको ये सब सोचने का वक़्त ही नहीं होता है ! राजनितिक पार्टिया अपने स्वार्थ के लिए लोगो का यूज़ करती है और हम लोगो को जाति और धर्म के नाम पर बाँट कर अपनी राजनितिक रोटी सोचती हैं!


पुराना है बंगाल और दंगो का रिस्ता- दंगा होना बंगाल में कोई नयी बात नहीं है, हिन्दू मुस्लिम दंगे बंगाल में होते ही रहते हैं, आये दिन वहां छूट फुट घटनाये होती ही रहती है,कुछ चरमपंथियों ने बंगाल में अपना गढ़ बना रखा है, हिन्दुओ की जनसँख्या वहां काम होने  के नाते मुस्लिम चरमपंथी वहां अपना गढ़ बनाना चाहते है, बंगलादेश से सीमा लगी होने के नाते दंगइयो को हथियार और गोल बारूद मिलने में ज़्यादा परेसानी नहीं होती, बॉर्डर के रास्ते तस्करी करके भारी मात्रा में सामान आता है और वो सब इन दंगो में उपियोग होता है! तस्करी करने में कुछ गांव वालो का साथ होता है जो की जंगलो के रास्ते और पानी के रास्ते अपना काम करते है!

कलकत्ता दंगा (1946)-सन 1946 में कलकत्ता में हुए इन दंगों को “डायरेक्ट एक्शन दिवस” के नाम से भी जाना जाता है. इसमें 4,000 लोगों ने अपनी जानें गंवाई थी, और 10,000 से भी ज़्यादा लोग घायल हुए थे. हिंदू-मुस्लिम समुदाय में होने वाली हिंसा के कारण यह दंगा हुआ था.

मीडिया नहीं दिखा रहा असली सच- विडम्बना ये है की ज़्यादातर मीडिया इन दंगो को नहीं दिखा रही और जो दिखा भी रहे है वो वो पूरा सच नहीं दिखा रहे हैं, प्रेस पर रोक लगी है की कोई यहाँ के असली हालात नहीं दिखायेगा, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री कह रही है की हालात सामान्य हैं, परंतु सच तो ये है की लोग मर रहे हैं और उनके दुःख दर्द को सुनने वाला और उनके ज़ख्मो पर मरहम लगाने वाला कोई नहीं है!

आलोक वार्ष्णेय की कुछ पक्तिया इस दर्द को बयां कर रही हैं!

फिर मरा है कोई
इस दंगे की आग में,
न हिन्दू, न मुसलमान
मर गया इंसान
इस दंगे की आग में

बैठे हैं सियासतखोर घरों में
आग है बस हमारे दरों पे
आम ही मरता आम ही मारे
इस दंगे की आग में

भस्म न होते भस्मासुर ये
भस्म हुए बस घर मेरे
जल-जल उठी इंसानियत
इस दंगे की आग में

आंखों के आंसू अब सूखे
दर्द हलक में अटका है
इंसान नहीं हैवान हुए सब
इस दंगे की आग में

नहीं-नहीं अब और नहीं
बहुत हुआ अब और नहीं
जल-जल उठी आत्मा मेरी
इस दंगे की आग में। 

Wednesday 11 January 2017

दाल पर दंगल क्यों ?


हमने  तुमको  है  खून  दिया, पर तुमने  हमको दर्द  दिया !
हमने तो  सिर्फ  रोटी  मांगी  और  तुमने  हमको  धून  दिया!!

यह बहुत ही हास्यपद लगता है जब किसी के खाने पर राजनीती होती है, खाना चाहे अमीर का हो गरीब का हो या किसी राजनेता का हो, अच्छा खाना खाने का हक़ सब को है, सरकार ने फ़ूड सिक्योरिटी बिल तो पास कर दिया, परन्तु क्या सब को खाना मिल रहा और अगर मिल रहा तो उसकी क्वालिटी क्या है, सरकार ने फ़ूड सिक्योरिटी बिल तो पास कर दिया पर खाने की गुणवत्ता को कौन देखेगा!

BSF में खाने को ले कर अभी जो घमासान चल रहा उसने तो सोचने पर मज़बूर कर दिया की क्या जो सेना का जवान हमारे लिए दिन रात जगता रहता है सरहदों की सुरक्षा करता है! धूल, धूप, मिट्टी, पानी, बरसात सब सहता है क्या वो दो वक़्त का अच्छा खाना खाने का हक़दार नहीं है! इनको सरकार भी इसी हिसाब से फंड्स देती है, उसके बिपरीत सरकार जो अफसर AC कमरो में बैठ कर मोटी सैलरी उठाते है उनको सारी सुख सुविधाये देती है!

कितनी है ज़रूरत- फ़ूड सिक्योरिटी कार्ड के अनुसार एक वयस्क की डाइट में प्रति दिन एनर्जी- 8,700 किलोजौल्स , प्रोटीन-50 ग्राम्स, फैट- 70 ग्राम्स, सैचुरेटेड फैटी एसिड्स-24 ग्राम्स, कार्बोहाइड्रेट्स-310 ग्राम्स, शुगर्स-90 ग्राम्स,सोडियम (साल्ट)-2.3 ग्राम्स, डाइटरी  फाइबर-30 ग्राम्स होना चाहिये! परन्तु ये डाइट रेगुलर व्यक्ति की है लेकिन जवान, फ़ोर्स, मिलिटरी के लोगो को इस से ज़्यादा न्यूट्रिशन्स की ज़रूरत होती है !

अगर हम अपने सरहद की रक्षा करने वालो को अच्छा खाना, अच्छा कपडे, अच्छे हथियार नहीं देंगे तो वो हमारी रक्षा उस तरफ से नहीं कर सकते जैसा वो करना चाहते हैं!
एक व्यक्ति जो भूखा है वो कितनी अच्छे तरह से अपनी ड्यूटी पूरी कर सकता है आप खुद सोच सकते हो ! अगर एक सेना के जवान को सही से खाना नहीं मिलेगा तो वो क्या भागेगा, क्या पहाड़ पर चढेगा, क्या रेत में ड्यूटी करेगा,क्या रात में जागेगा,
चाहे वो एक सामान्य व्यक्ति हो या सेना का जवान हो भूख सबको लगती है, इस लिए कब लोग खाना खाने के लिए और  अच्छा खाना खाने के पुरे हक़दार है !

ऐसे भी कहा गया है की "भूखे भजन न होये गोपाला, ये लो कंठी ये लो माला"

 

Tuesday 10 January 2017

तुम से न हो पायेगा

"कौन  कहता  है  आसमान  में  सुराख  नहीं  हो  सकता,  एक  पत्थर  तोह  तबियत  से  उछालो  यारो !"

ये शेर तो बहुत ही चरितार्थ है लेकिन पप्पू जी की कुछ पुरानी परफॉरमेंस को देख कर ऐसा नहीं लगता की ऐसा कुछ होने वाला है, आलू उगाने की फैक्ट्री लगाने वाले बयान के बाद से तो ट्विटर और फेसबुक पर पप्पू भैया का तो जैसे मानो नाम ही छा गया, आज के टाइम पाकिस्तानी जितना बिलावल भुट्टो को प्यार करते है उतना है हमारे यहाँ हिन्दोस्तान में लोग पप्पू भैया को प्यार करते हैं, ये बहुत बड़ी विडम्बना है की इतने बड़े सियासी परिवार से होने के बाद भी पप्पू भैया का IQ लेबेल आज भी उतना ही है जितना गिलास उल्टा करने के बाद उसमे पानी बचत है, अभी हालिया में पप्पू भैया ने बयान दिया था की अगर मैं संसद में बोला तो भूकमप आ जायेगा तब से सारा देश डर के मारे सही से सो नहीं पा रहा है! एक समय तो ऐसा लगने लगा था की भैया अपनी पार्टी के पालन हार बन कर ए हैं लेकिन धीरे धीरे लोगो ने जान लिया के भैया अपनी पार्टी की बची खुची नैया भी डूब देंगे! देश के कुछ यूआ राजनेता को लोग अपना आदर्श मानते है लेकिन पप्पू भैया को लोग क्या माने आज तक इसे असमंजश में हैं,

बाबा का दिया हुआ है नाम- योग गुरु बाबा ने ही पप्पू भैया न नाम करण क्या सब से पहले उन्हों ने ही भैया को इस नाम से संबोधित किया और उस के बाद से शायद ही किसी ने भैया को उनके असली नाम से याद किया हो, वैसे हमारी मने तो बाबा ने ये नाम उन्हें बहुत सोच समझ कर दिया है, बाबा ने बहुत गहन अध्यन के बाद के ऐसा चमत्कारिक  नाम से उन्हें गौरवान्वित किया, और यह नाम पप्पू भैया पर पूरी तरह फिट बैठता है!

केजरीवाल है असली कॉम्पटीटर- पप्पू भैया का अगर बिलावल भुट्टो के बाद भारत में कोई कॉम्पटीटर देखा जाये तो सिर्फ एक ही व्यक्ति उत्तराअध्किरी है और वो है डेल्ही के चीफ मिनिस्टर श्री श्री अरविन्द जी, इन दो महानुभाओं को लोग उतना ही सीरियस लेते है जितना हम गुटके पर छपी चेतवानी को, आज के टाइम में भारत में इनसे बड़ा जानकर और ज्ञानी कोई नहीं है, देश के किसी भी केस को देख ले इनके पास सबसे पहले सबूत पहुच जाते है परंतु बिडम्बना ये है की आज तक ये लोग कोई भी सबूत पेश करने में सक्षम नहीं हो पाए हैं.
सभी बातो पर गौर करने के बाद लावारिश फिल्म के एक गाने के एक लाइन याद आ रही है.

अपनी तो जैसे-तैसे, थोड़ी ऐसे या वैसे कट जाएगी,आपका क्या होगा जनाब-ए-आली

Monday 9 January 2017

अखिलेश यादव ही है असली बॉस

समाजवादी पार्टी में चल रही उथल पुतल के बीच लोगो में मन में बहुत से विचार आ रहे हैं की क्या होगा अखिलेश यादव का भविस्य, एक तरफ मुलायम और अखिलेश में सुलह के आसार नहीं दिख रहे और दूसरी तरफ शिवपाल और अमर सिंह अपने दाँव चले जा रहे है, प्रथम दृस्ता किसी को भी लगेगा की अखिलेश यादव को सिर्फ रामगोपाल और कुछ विधायको का ही साथ है परन्तु ऐसा नहीं है, इस पारिवारिक कलह का सब से ज़्यादा फ़ायदा अगर किसी को मिला है तो वो है अखिलेश, चुनाव से ठीक पहले अखिलेश यादव को लोगो की संवेदना मिल गयी, और इस के साथ साथ समाजवादी पार्टी के यूआ अखिलेश के साथ हो गए, नवजवान मुख्यमंत्री होने के नाते अखिलेश यूआ पीढ़ी और पार्टी के यूआ मेम्बर्स में काफी लोकप्रिय हो गए हैं,अखिलेश ने सुरुवात को एक ट्रेनी मुख्यमंत्री के रूप में की लेकिन बहुत जल्दी हो वो परिपक़्व हो गए और धीरे धीरे उन्हों ने अपनी पावर और सूझ बूझ का इस्तेमाल करना सुरु कर दिया और पार्टी में मुख्य कलह का कारन भी यही है, आज अखिलेश  के साथ एक बड़ा वर्ग होने के नाते समाजवादी पार्टी के सामने सिर्फ एक ही रास्ता बचा है की उन्हें फिर से मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया जाये !

अखिलेश का सुरुवाती जीवन और शिक्षा- अखिलेश यादव का जन्म 1 जुलाई 1973 में सैफई में हुआ, उनकी सुरुवाती शिक्षा धौलपुर मिलिट्री स्कूल राजस्थान में हुई उसके बाद उन्हों ने मैसूर से  सिविल  एनवायर्नमेंटल  इंजीनियरिंग की और उसके बाद उन्हों ने यूनिवर्सिटी  ऑफ़  सिडनी  ऑस्ट्रेलिया से एनवायर्नमेंटल  इंजीनियरिंग में डिग्री लिया.

अखिलेश  यादव समाजवादी  के पार्टीनेशनल  प्रेजिडेंट  है और उत्तर प्रदेश के बीसवे  मुख्यमंत्री है ! अखिलेश   ने अपना कार्यभार १५ मार्च २०१२ को ३८ साल की उम्र में संभाला, अखिलेश  उत्तर प्रदेश के अब तक के सब से यूआ मुख्यमंत्री है ! अखिलेश  ने पहली बार  कन्नौज लोक सभा से जीत हासिल की थी !

Sunday 8 January 2017

मल्टीनेशनल कंपनियों की कार्य शैली




आज का दौर मल्टीनेशनल कम्पनीज का दौर है, आज हर यूथ जॉब करने के लिए सब से पहले मल्टीनेशनल कंपनी की ही ओर भागता है पैर ऐसा क्यों है, इसका उपयुक्त उत्तर है  मल्टीनेशनल कम्पनीज की कार्य शैली, पैसा तो आप किसी राष्ट्रीय कंपनी में भी कमा सकते है लेकिन ये कंपनिया आप को वो कार्य शैली और वो एनवायरनमेंट नहीं दे पाती और यही कारण है की आज का यूथ इनकी तरफ भागता है.

 मल्टीनेशनल कम्पनीज की कार्य शैली अलग कैसे-

१- प्रोफेशनल एनवायरनमेंट- यदि आप की मल्टीनेशनल कंपनी में प्रवेश करेगे तो आप देखेगे की वहां हर कोई प्रोफेशनल तरह से पेश आएगा, प्रोफेशनल  तररह से बात करेगा, उकना उठना बैठना खाना पीना एक प्रोफेशनल  की तरह होगा.

२- स्ट्रेस फ्री एनवायरनमेंट- मल्टीनेशनल कम्पनीज अपने एम्प्लाइज का बहुत ख्याल रखती है, उनका मानना है की जब एम्प्लोयी मानसिक रूप से स्वस्थ रहेगा तभी वो अपने काम को सही ढंग से कर सकता है, इसके लिए कंपनिया समय-समय पर स्ट्रेस मैनेजमेंट कोर्स, योग क्लासेज और कॉउंसलिंग कराती रहती है.

३-पर्सनल लाइफ और प्रोफेशनल लाइफ में बैलेंस- मल्टीनेशनल कम्पनीज आप को हमेशा अपनी पर्सनल लाइफ और प्रोफेशनल लाइफ में बैलेंस की आज़ादी देते है,

४- उत्साह वर्धन और रिवार्ड्स- समय समय पर एम्प्लाइज को उनके कार्य के अनुसार रिवॉर्ड और उत्साह वर्धन मिलता रहता है जिससे की एम्पलॉयज का उत्साह हमेशा बढ़ता रहता है.

५- मैनेजमेंट तक आप की पहुच- छोटे से छोटे पद पर बैठा एम्प्लोयी भी किसी भी वक़्त अपनी मैनेजमेंट तक पहुच सकता है उन तक अपनी बात पंहुचा सकता है.

६- ट्रेनिंग प्रोग्राम- मल्टीनेशनल कम्पनीज अपनी एम्प्लाइज के ट्रेनिंग का बहुत ख्याल रखती है और समय समय पर उनकी ट्रेनिंग का इंतज़ाम करती रहती है जिससे की एम्प्लोयी हमेशा अपडेट रहे.


इस के साथ- साथ कम्पनीज अपनी एम्प्लाइज के लिए इंडोर गेम्स, आउटडोर गेम्स, एम्प्लाइज आउटिंग,पार्टी आदि पर भी अच्छा पैसा खर्च करती है जिससे की उनके एम्प्लाइज हमेशा खुश रहे और उनका मानसिक विकाश भी होता रहे.

Friday 6 January 2017

हम पश्चिम की तरफ जाते हुए

बैंगलोर की हालिया घटनाओ को देख कर ऐसा लगता है किस हम किस दिशा में बढ़ रहे हैं , क्या हमे यही सिखया गया है , क्या हम ऐसे ही थे , नहीं बिलकुल नहीं, अपितु इस पर्याय में हम सिर्फ इतना कह सकते हैं की हम पश्चिमी सभयता को अपनानाने में इतना खो गए हैं की हमे अपना कुछ याद ही नहीं रह गया, बात ये नहीं की वहां क्या हुआ बल्कि ये सोचने की ज़रूरत है की ऐसा क्या हुआ , ऐसा नहीं की इस तरह की ये पहली घटना है , क्या हम अपने आने वाली पीढी को सही दिशा में ले जा रहे हैं, एक ऐसा सहर जहाँ लड़का और लड़की दोनों सामान रूप से अपना जीवन निर्वाह कर रहे है वहां ऐसी घटना हमे बताती है की हम आज भी अपनी क्रूर मानसिकता का सीकार हैं, हम पश्चिमी सभ्यता को तो दिल खोल कर अपना रहे हैं लेकिन हम उनसे सिर्फ उनका खान पान और पहनावा ही कॉपी कर रहे हैं , क्या हमने कभी उनका नेचर अपनाने की कोसिस की , नहीं हम  बस पागलो की तरह उनकी कुछ चीज़ों का अनुसरण किये जा रहे हैं, हमे ज़रूरत है अपनी मानसिकता बदलने की।