Friday 13 January 2017

जलता बंगाल

बंगाल में अभी हो रहे साम्प्रदायिक दंगो में हज़ारो लोगो की जान जा चुकी है, हज़ारो लोग बेघर हो चुके है, कितने परिवार तबाह हो चुके है, लोगो के घर जलाये जा रहे हैं, कितनी माताओ और बहनो की इज़्ज़त लूटी जा रही रही, लोगो में दहसत का तो ये आलम है की लोग अपने घर बार छोड़ कर भाग रहे हैं, स्तिथि भय से भयावह होती जा रही है,ना ही तो पुलिस कोई ठोस कदम उठा रही है और ना ही प्रसासन कुछ करने के मूड में दिखाई दे रहा है! कुछ प्रत्क्षयदर्सियो के अनुसार सब कुछ पुलिस के सामने होता है लेकिन वो कुछ करते नहीं हैं! सोचने वाली बात ये है की आखिर ये सब हो क्या रहा है, इन दंगो का मुख्य कारण है भाषा और जाति का एकांकी करण बंगाल में लोग हिंदी भासी को स्वीकार नहीं करते वहां लोग ज़्यादातर बंगला भाषा को ही तबज्जो देते हैं, लेकिन सोचने की बात ये भी है की आम इंसान जो मेहनत मज़दूरी कर के अपने परिवार का पेट भरता है उसको जाति और धर्म से ज़्यादा फर्क पड़ता है, मेरे हिसाब से तो वो पेट की आग बुझाने में इतना मसगूल होता है की उसको ये सब सोचने का वक़्त ही नहीं होता है ! राजनितिक पार्टिया अपने स्वार्थ के लिए लोगो का यूज़ करती है और हम लोगो को जाति और धर्म के नाम पर बाँट कर अपनी राजनितिक रोटी सोचती हैं!


पुराना है बंगाल और दंगो का रिस्ता- दंगा होना बंगाल में कोई नयी बात नहीं है, हिन्दू मुस्लिम दंगे बंगाल में होते ही रहते हैं, आये दिन वहां छूट फुट घटनाये होती ही रहती है,कुछ चरमपंथियों ने बंगाल में अपना गढ़ बना रखा है, हिन्दुओ की जनसँख्या वहां काम होने  के नाते मुस्लिम चरमपंथी वहां अपना गढ़ बनाना चाहते है, बंगलादेश से सीमा लगी होने के नाते दंगइयो को हथियार और गोल बारूद मिलने में ज़्यादा परेसानी नहीं होती, बॉर्डर के रास्ते तस्करी करके भारी मात्रा में सामान आता है और वो सब इन दंगो में उपियोग होता है! तस्करी करने में कुछ गांव वालो का साथ होता है जो की जंगलो के रास्ते और पानी के रास्ते अपना काम करते है!

कलकत्ता दंगा (1946)-सन 1946 में कलकत्ता में हुए इन दंगों को “डायरेक्ट एक्शन दिवस” के नाम से भी जाना जाता है. इसमें 4,000 लोगों ने अपनी जानें गंवाई थी, और 10,000 से भी ज़्यादा लोग घायल हुए थे. हिंदू-मुस्लिम समुदाय में होने वाली हिंसा के कारण यह दंगा हुआ था.

मीडिया नहीं दिखा रहा असली सच- विडम्बना ये है की ज़्यादातर मीडिया इन दंगो को नहीं दिखा रही और जो दिखा भी रहे है वो वो पूरा सच नहीं दिखा रहे हैं, प्रेस पर रोक लगी है की कोई यहाँ के असली हालात नहीं दिखायेगा, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री कह रही है की हालात सामान्य हैं, परंतु सच तो ये है की लोग मर रहे हैं और उनके दुःख दर्द को सुनने वाला और उनके ज़ख्मो पर मरहम लगाने वाला कोई नहीं है!

आलोक वार्ष्णेय की कुछ पक्तिया इस दर्द को बयां कर रही हैं!

फिर मरा है कोई
इस दंगे की आग में,
न हिन्दू, न मुसलमान
मर गया इंसान
इस दंगे की आग में

बैठे हैं सियासतखोर घरों में
आग है बस हमारे दरों पे
आम ही मरता आम ही मारे
इस दंगे की आग में

भस्म न होते भस्मासुर ये
भस्म हुए बस घर मेरे
जल-जल उठी इंसानियत
इस दंगे की आग में

आंखों के आंसू अब सूखे
दर्द हलक में अटका है
इंसान नहीं हैवान हुए सब
इस दंगे की आग में

नहीं-नहीं अब और नहीं
बहुत हुआ अब और नहीं
जल-जल उठी आत्मा मेरी
इस दंगे की आग में। 

No comments:

Post a Comment